UPSC में लेटरल एंट्री: SC/ST/OBC आरक्षण पर बवाल, 45 पदों की भर्ती पर विवाद लेटरल एंट्री पर विवाद: UPSC ने क्यों वापस लिया विज्ञापन?

UPSC द्वारा 17 अगस्त को जारी किए गए लेटरल एंट्री के 45 पदों के विज्ञापन को तीन दिन बाद वापस ले लिया गया। कार्मिक विभाग के मंत्री जितेंद्र सिंह ने UPSC की चेयरमैन प्रीति सुदन को पत्र लिखकर इस भर्ती को रद्द करने के निर्देश दिए। इस भर्ती में संयुक्त सचिव, उप-सचिव और निदेशक जैसे महत्वपूर्ण पद शामिल थे।

विपक्ष का आरोप: SC/ST/OBC का हक छीना जा रहा है

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने लेटरल एंट्री के जरिए SC, ST और OBC समुदाय के हक छीनने का आरोप लगाया। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कांग्रेस पर पलटवार करते हुए कहा कि लेटरल एंट्री का कॉन्सेप्ट कांग्रेस सरकार का ही है।

लेटरल एंट्री: क्या है यह प्रक्रिया?

लेटरल एंट्री का मतलब है कि प्राइवेट सेक्टर के अनुभवी व्यक्तियों को सरकारी विभागों के उच्च पदों पर सीधे नियुक्त किया जाए। इसका उद्देश्य प्रशासन में विशेषज्ञता लाना और प्रतिस्पर्धा को बनाए रखना है। इसमें संयुक्त सचिव, निदेशक और उप-सचिव जैसे पदों पर नियुक्ति होती है।

क्या लेटरल एंट्री में आरक्षण लागू नहीं होता?

इस विषय पर विवाद की स्थिति बनी हुई है। बीजेपी IT सेल के प्रमुख अमित मालवीय का कहना है कि लेटरल एंट्री में भी आरक्षण के नियम लागू होते हैं, जबकि कुछ रिपोर्ट्स में कहा गया है कि ऐसा नहीं है। दरअसल, 3 से कम पदों की भर्तियों पर आरक्षण लागू नहीं होता।

लेटरल एंट्री की शुरुआत कब हुई?

2018 में नरेंद्र मोदी सरकार के नेतृत्व में पहली बार लेटरल एंट्री के जरिए भर्ती की गई। हालांकि, इस कॉन्सेप्ट की शुरुआत कांग्रेस के कार्यकाल में 2005 में हुई थी, लेकिन उस समय इसे लागू नहीं किया गया था।

क्या कांग्रेस ने की थी लेटरल एंट्री की शुरुआत?

कांग्रेस का कहना है कि 2005 में नौकरियों में सुधार के लिए ARC बनाई गई थी, लेकिन UPA सरकार ने लेटरल एंट्री से कोई भर्ती नहीं की। इसके बावजूद, बीजेपी का दावा है कि कांग्रेस के ही सुझावों के आधार पर लेटरल एंट्री का कॉन्सेप्ट तैयार किया गया।

लेटरल एंट्री में SC/ST/OBC आरक्षण क्यों नहीं?

कांग्रेस प्रवक्ता शक्ति सिंह गोहिल का कहना है कि लेटरल एंट्री के जरिए OBC, SC-ST का हक छीना जा रहा है, क्योंकि इन भर्तियों में आरक्षण लागू नहीं होता। हालांकि, बीजेपी का कहना है कि लेटरल एंट्री की नियुक्तियां भी आरक्षण नियमों के तहत ही की जा रही हैं।

लेटरल एंट्री: क्या संविधानिक प्रावधानों का उल्लंघन है?

लेटरल एंट्री को लेकर सामाजिक न्याय और संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन होने के आरोप लगते रहे हैं। कुछ लोगों का मानना है कि यह प्रक्रिया युवाओं को हतोत्साहित करती है और पूंजीपति घरानों के लोगों को फायदा पहुंचाती है।

नतीजा: लेटरल एंट्री पर क्या भविष्य?

लेटरल एंट्री की भर्तियों को लेकर विवाद जारी है। सरकार के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह इस प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी और न्यायसंगत बनाए, ताकि समाज के हर वर्ग को उचित प्रतिनिधित्व मिल सके।

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